Mung Ki Kheti: ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती कैसे करें? संपूर्ण जानकारी
Mung Ki Kheti (ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती): नमस्ते दोस्तों, आज इस लेख में हम बात करेंगे कि ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती कैसे करें। ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती, यानी गर्मियों के सीज़न में उगाई जाने वाली मूंग, भारतीय किसानों के लिए अतिरिक्त मुनाफा कमाने का एक शानदार मौका। गर्मियों में जब सूरज की तपिश बढ़ती है, तब ये मूंग की खेती कम समय और कम संसाधनों में अच्छी पैदावार दे सकती है।
अगर आप खेती से जुड़े इंसान हैं और सोच रहे हैं कि गर्मियों में मूंग की खेती की जाए और इसको लेकर आपके मन में ढेर सारे सवाल हैं जैसे, ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती क्यों करें? क्या ये दूसरी फसलों से बेहतर है? इसे शुरू करने में कितना खर्च आएगा? मिट्टी, बीज, पानी और कीटों का क्या करना है? इस लेख में हम इन सवालों को इतने विस्तार से कवर करेंगे कि आपको हर छोटी-बड़ी बात समझ आ जाएगी।
इस लेख मुख्य रूप से हम आपको बताएंगे कि "ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती कैसे करें", "ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के फायदे", "जायद मूंग की फसल की लागत और मुनाफा", "ग्रीष्मकालीन मूंग की उन्नत तकनीक" आदि। उम्मीद करते हैं इसलिए को पढ़ने के बाद आपके मन में कोई अतिरिक्त प्रश्न नहीं रहेगा।
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती क्यों करें?
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती फरवरी से मार्च के बीच शुरू होती है और कई मायनों में खास होती है। यह फसल महज 60-75 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को कम समय में अच्छा उत्पादन मिल सकता है। जब सर्दियाँ खत्म हो रही होती हैं और खरीफ सीजन दूर होता है, तब जायद मूंग खेतों को हरा-भरा रखने के साथ-साथ किसानों की आय भी बढ़ाती है।
गर्मियों में पानी की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती होती है, लेकिन मूंग की फसल सिर्फ 2-3 सिंचाइयों में अच्छी तरह बढ़ जाती है। इसके विपरीत, गन्ने और अन्य गर्मियों की फसलें अधिक पानी मांगती हैं। यदि आपके पास ट्यूबवेल या नहर का सीमित पानी उपलब्ध है, तो मूंग एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।
इसके अलावा, यह फसल मिट्टी की सेहत के लिए भी फायदेमंद होती है। मूंग की जड़ों में मौजूद राइजोबियम बैक्टीरिया नाइट्रोजन को बांधने का काम करते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और अगली फसलों को प्राकृतिक रूप से पोषण मिलता है। यही कारण है कि कई किसान मूंग को धान या गेहूं जैसी फसलों के लिए जमीन तैयार करने के तौर पर अपनाते हैं।
बाजार में मूंग की अच्छी मांग रहती है, खासकर दाल के रूप में इसकी खपत अधिक होती है। अगर सही समय पर इसकी बुवाई और देखभाल की जाए तो किसान अच्छी उपज के साथ बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं।
क्या ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती दूसरी ग्रीष्मकालीन फसलों से बेहतर है?
अक्सर किसान इस मौसम में मक्का, बाजरा या सब्जियाँ उगाते हैं, लेकिन मूंग इनसे कैसे अलग और बेहतर है? आइए इसकी तुलना करके समझते हैं।
सबसे बड़ा अंतर पानी की खपत में है। मक्का को हर 10-12 दिन में सिंचाई की जरूरत पड़ती है, वहीं सब्जियाँ जैसे टमाटर और भिंडी भी बार-बार पानी मांगती हैं। इसके विपरीत, मूंग सिर्फ 2-3 सिंचाइयों में अच्छी उपज दे देती है, जो पानी की कमी वाले क्षेत्रों के लिए बेहद फायदेमंद है।
दूसरा फायदा फसल की अवधि का है। मक्का को पकने में 90-100 दिन लगते हैं, जबकि मूंग 60-75 दिनों में तैयार हो जाती है। इसका मतलब है कि किसान इसे जल्दी काटकर अगली फसल की तैयारी कर सकता है, जिससे खेत खाली नहीं रहता और अधिक उत्पादन का अवसर मिलता है।
इसके अलावा, मूंग की खेती मिट्टी की सेहत के लिए भी बेहतरीन होती है। यह फसल नाइट्रोजन को मिट्टी में वापस लाने में मदद करती है, जिससे अगली फसल को प्राकृतिक उर्वरक मिलता है और खाद की जरूरत कम हो जाती है। दूसरी ओर, मक्का और बाजरा जैसी फसलें मिट्टी से ज्यादा पोषक तत्व खींच लेती हैं, जिससे बार-बार उर्वरकों का इस्तेमाल करना पड़ता है।
आर्थिक रूप से भी मूंग एक लाभदायक सौदा साबित होती है। चूंकि इसकी खेती में पानी और खाद कम लगते हैं, उत्पादन लागत कम आती है। साथ ही, बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिलती है, खासकर अगर इसे जैविक तरीके से उगाया जाए।
संक्षेप में कहें तो, अगर किसान कम पानी, कम समय और कम लागत में बेहतर लाभ चाहता है, तो ग्रीष्मकालीन मूंग एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है।
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती का सही समय और जलवायु
ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय फरवरी से मार्च के बीच होता है। इस दौरान सर्दियों का प्रभाव कम होने लगता है, और तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाने लगता है, जो मूंग के अंकुरण और प्रारंभिक बढ़वार के लिए आदर्श स्थिति बनाता है। हालाँकि, अप्रैल में भी इसकी बुवाई संभव है, लेकिन अधिक देर होने पर अत्यधिक गर्मी फसल पर नकारात्मक असर डाल सकती है, खासकर फूल आने के समय, जिससे उत्पादन घट सकता है।
अगर जलवायु की बात करें, तो मूंग की खेती के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा माना जाता है। इस तापमान सीमा में पौधे तेजी से बढ़ते हैं और स्वस्थ रहते हैं। गर्मियों के मौसम में जब सूरज तेज़ चमकता है और हल्की नमी बनी रहती है, तब मूंग का विकास अच्छा होता है। हालांकि, अगर तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाए या लंबे समय तक सूखे की स्थिति बनी रहे, तो इससे पौधों पर नकारात्मक असर पड़ता है। तेज़ गर्मी में फूल झड़ सकते हैं, जिससे उपज कम हो जाती है। इसलिए बुवाई के समय को ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है।
ग्रीष्मकाल में हल्की हवाएँ और बहुत कम बारिश मूंग की बढ़वार के लिए फायदेमंद होती हैं। ज्यादा नमी या लगातार बारिश से फसल में बीमारियों और कीटों का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए उचित जल निकासी वाले खेतों का चुनाव करना भी ज़रूरी है, ताकि अधिक नमी के कारण पौधे गलने या जड़ सड़न जैसी समस्याओं से बचा जा सके।
अगर किसान सही समय पर बुवाई करें और मौसम के अनुरूप प्रबंधन करें, तो ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल कम समय में अच्छा मुनाफा देने वाली साबित हो सकती है।
मूंग की खेती के लिए कौन सी मिट्टी सही है?
मूंग की खेती के लिए सही मिट्टी का चयन बेहद जरूरी है क्योंकि मिट्टी का प्रकार सीधे फसल की पैदावार और गुणवत्ता को प्रभावित करता है। गर्मियों में भी मूंग को हरा-भरा बनाए रखने के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यह न बहुत सख्त होती है और न ही बहुत ढीली, जिससे पौधों को पर्याप्त पोषण और नमी मिलती रहती है।
अगर आपके खेत में बलुई दोमट मिट्टी है, तो यह भी मूंग के लिए अच्छी होती है क्योंकि इसमें जल निकासी बेहतर होती है, जिससे पानी का ठहराव नहीं होता। वहीं, हल्की काली मिट्टी भी मूंग के लिए उपयोगी हो सकती है, लेकिन इसमें जलभराव न हो, इसका खास ध्यान रखना जरूरी है। मिट्टी का pH स्तर 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए ताकि पौधों को पोषक तत्व सही मात्रा में मिल सकें। गर्मियों में मिट्टी अधिक सूखने न पाए, इसके लिए उचित नमी बनाए रखना बेहद जरूरी है।
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के लिए खेत कैसे तैयार करें?
मूंग की अच्छी उपज के लिए खेत की तैयारी सही तरीके से करना आवश्यक है।
- गहरी जुताई: फरवरी महीने में पहली गहरी जुताई करें, जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाए और सर्दियों की फसल के बचे हुए अवशेष मिट्टी में दबकर सड़ जाएँ। गहरी जुताई 20-25 सेमी तक करें, जिससे मिट्टी में हवा संचार अच्छा हो और जड़ें मजबूती से बढ़ सकें।
- खाद और उर्वरक: मूंग की फसल को अच्छी उपज देने के लिए जैविक खाद और उर्वरकों का संतुलित उपयोग करना जरूरी है। खेत की तैयारी के समय 10-15 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिट्टी में मिलाएँ। इसके अलावा, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का संतुलित अनुपात भी ज़रूरी होता है। उदाहरण के लिए, प्रति एकड़ 12-15 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25-30 किलोग्राम फॉस्फोरस और 15-20 किलोग्राम पोटाश का उपयोग किया जा सकता है।
- जल निकासी और नमी नियंत्रण: गर्मियों में खेत में नमी बनाए रखना जरूरी है, लेकिन जलभराव नहीं होना चाहिए। खेत में हल्की जुताई करके पलेवा करें, जिससे नमी संरक्षित रहे। जरूरत के अनुसार सिंचाई करें और मल्चिंग तकनीक अपनाएँ, जिससे मिट्टी में नमी लंबे समय तक बनी रहे।
सही मिट्टी और बेहतर खेत प्रबंधन से मूंग की फसल न सिर्फ तेजी से बढ़ती है, बल्कि अधिक उत्पादन भी देती है।
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के लिए कौन सी किस्म का बीज चुनें?
गर्मियों में मूंग की अच्छी पैदावार के लिए सही बीज का चयन करना बेहद जरूरी है। उन्नत किस्मों का चुनाव करने से फसल न सिर्फ तेजी से बढ़ती है बल्कि कीटों और रोगों का असर भी कम होता है। जायद सीजन के लिए कुछ बेहतरीन मूंग की किस्में निम्नलिखित हैं:
- Pusa Vishal – यह किस्म 60-65 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और इसकी पैदावार 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। इसकी तेजी से बढ़ने की क्षमता इसे गर्मी के मौसम के लिए उपयुक्त बनाती है।
- ML 818 – यह किस्म गर्मी में तेज़ी से ग्रोथ करती है और इसकी औसत पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
- SML 668 – अगर आप ऐसी किस्म चाहते हैं जो कीटों के प्रति अधिक सहनशील हो, तो SML 668 एक अच्छा विकल्प हो सकता है। यह जायद सीजन के लिए भी उपयुक्त है और खेतों में नुकसान को कम करने में मदद करता है।
- Pant Moong-5 – इस किस्म की सबसे खास बात यह है कि यह सूखा सहन करने की क्षमता रखती है, जिससे यह कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए आदर्श बन जाती है।
- Pusa Baisakhi – यह किस्म सबसे जल्दी तैयार होने वाली किस्मों में से एक है और 55-60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जल्दी पकने के कारण किसान इसे दूसरी फसलों के लिए समय पर जगह खाली करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
बीज की मात्रा और उपचार
मूंग की फसल के लिए 15-20 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की मात्रा उपयुक्त होती है। बेहतर अंकुरण और उच्च पैदावार के लिए बुवाई से पहले बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें। इससे फसल की जड़ों में नाइट्रोजन फिक्सिंग क्षमता बढ़ती है, जिससे पौधों की वृद्धि और उत्पादन बेहतर होता है।
इसके अलावा, बीज को 24 घंटे पानी में भिगोकर बोने से अंकुरण अच्छा होता है और पौधे स्वस्थ रहते हैं। सही बीज का चुनाव और उचित तैयारी करने से मूंग की खेती को अधिक लाभदायक बनाया जा सकता है।
ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई कैसे करें?
ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल अच्छी हो, इसके लिए बुवाई का सही तरीका अपनाना बहुत जरूरी है। अगर बीज सही गहराई और उचित दूरी पर बोए जाएँ, तो अंकुरण अच्छा होता है और पौधे स्वस्थ तरीके से विकसित होते हैं।
- बुवाई की सही दूरी: मूंग की पौधों को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिलनी चाहिए ताकि वे पोषक तत्वों और धूप को अच्छे से अवशोषित कर सकें। इसके लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-40 सेमी और पौधे से पौधे के बीच 10-15 सेमी रखना आदर्श होता है। इससे पौधों के बीच प्रतिस्पर्धा कम होगी, और फसल का विकास समान रूप से होगा।
- बीज बोने की गहराई: बीज को 3-4 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए। अगर बीज बहुत गहरे बो दिए जाएँ, तो अंकुरण में समस्या आ सकती है।
- बीज बोने का सही तरीका: बुवाई के लिए सीड ड्रिल या हल का उपयोग करें, ताकि बीज पंक्तियों में समान रूप से बोए जा सकें। इससे पौधों की बढ़वार अच्छी होती है और खरपतवार नियंत्रण में भी आसानी होती है। यदि आप हाथ से बुवाई कर रहे हैं, तो पंक्तियाँ बनाकर ही बीज डालें, ताकि फसल व्यवस्थित रहे और देखभाल आसान हो।
ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई के लिए जरूरी सावधानियाँ
मूंग की बुवाई से पहले खेत में हल्की नमी होनी चाहिए। अगर मिट्टी ज्यादा सूखी होगी, तो अंकुरण कमजोर रह सकता है। गर्मियों में तापमान अधिक होने के कारण, सुबह या शाम के समय बुवाई करना बेहतर होता है, ताकि बीजों को शुरुआती नमी मिल सके और अंकुरण अच्छे से हो।
बुवाई के कुछ दिन जब मूंग का पौधा थोड़ा बड़ा हो जाता है तब हल्की सिंचाई करना बहुत जरूरी होता है, खासकर गर्मी में, ताकि पौधा जल्दी और समान रूप से विकसित हो सकें। ज्यादा पानी देने से बचें, क्योंकि मूंग को अधिक नमी पसंद नहीं होती।
अगर ये सभी बातें ध्यान में रखी जाएँ, तो ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई सफल होगी और फसल की अच्छी शुरुआत होगी, जिससे उत्पादन भी बेहतर मिलेगा।
ग्रीष्मकालीन की मूंग की फसल की सिंचाई कैसे करे?
गर्मियों में पानी का सही प्रबंधन मूंग की फसल की सेहत और उत्पादन पर बड़ा असर डालता है। चूंकि गर्मी के मौसम में पानी की उपलब्धता अक्सर सीमित होती है, इसलिए सही समय और सही मात्रा में सिंचाई करना जरूरी होता है। पूरे फसल चक्र में 2-3 बार सिंचाई करना पर्याप्त होता है।
- पहली सिंचाई (अंकुरण के बाद, जब पौधे थोड़े बड़े हो जाएँ): बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई करने की जरूरत नहीं होती। पहले अंकुरण होने दें और जब पौधे मिट्टी से बाहर आकर थोड़ा बढ़ने लगें तथा मिट्टी पूरी तरह सूख चुकी हो, तभी पहली सिंचाई करें। इस समय हल्की सिंचाई करना जरूरी है ताकि पौधों को नमी मिल सके, लेकिन जलभराव न हो।
- दूसरी सिंचाई (फूल आने के समय, लगभग 25-30 दिन बाद): यह सबसे महत्वपूर्ण सिंचाई मानी जाती है क्योंकि इस समय पौधों में फूल विकसित हो रहे होते हैं। अगर इस समय पानी की कमी हुई, तो फूल झड़ सकते हैं और पैदावार पर सीधा असर पड़ेगा। हल्की सिंचाई करें और ध्यान रखें कि मिट्टी में बहुत ज्यादा नमी न हो, क्योंकि इससे फफूंदजनित रोग लगने का खतरा रहता है।
- तीसरी सिंचाई (फलियाँ बनने के समय, लगभग 45-50 दिन बाद): जब फलियाँ बनने लगती हैं, तब पौधों को नमी की जरूरत होती है, ताकि फलियाँ अच्छी तरह भर सकें और दाने मजबूत बनें। इस समय पानी की कमी से फलियाँ सिकुड़ सकती हैं और दाने कमजोर रह सकते हैं। इसलिए इस सिंचाई को हल्के बहाव में करें, ताकि नमी पर्याप्त बनी रहे लेकिन जलभराव न हो।
सिंचाई के सही तरीके:
ड्रिप इरिगेशन सबसे अच्छा तरीका है, क्योंकि यह पानी की बर्बादी रोकता है और सीधे जड़ों तक नमी पहुँचाता है। यदि नहर या ट्यूबवेल से सिंचाई कर रहे हैं, तो हल्का पानी बहाएँ, ज्यादा पानी देने से बचें। हर 10-15 दिन में मिट्टी की नमी जांचें – अगर ऊपरी सतह पूरी तरह सूख चुकी हो, तभी सिंचाई करें।
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती में खरपतवार, कीट और रोगों का सही समय पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि इनका फसल की पैदावार पर सीधा असर पड़ता है। गर्मियों में खरपतवार तेजी से बढ़ते हैं, जिससे मूंग के पौधों को जरूरी पोषक तत्व, पानी और धूप सही मात्रा में नहीं मिल पाते। इसलिए बुवाई के 20-25 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करें और करीब 40 दिन बाद दूसरी बार इसे दोहराएं। साथ ही, पेंडिमेथालिन (1 लीटर प्रति हेक्टेयर) को 500 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के तुरंत बाद छिड़काव करें। अगर खेत में खरपतवार ज्यादा हो जाएं, तो उन्हें हाथ से निकालकर मिट्टी में दबा देना चाहिए।
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती में रोग-कीट प्रबंधन कैसे करें?
खरपतवार के साथ-साथ कीट और रोग भी मूंग की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। गर्मी के मौसम में सफेद मक्खी ज्यादा सक्रिय रहती है, जो पत्तियों का रस चूसकर फसल को कमजोर कर देती है। इसके नियंत्रण के लिए नीम तेल (5 मिली प्रति लीटर पानी) या इमिडाक्लोप्रिड (0.5 मिली प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें। फली छेदक कीट मूंग की फलियों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे पैदावार घट जाती है। इसके लिए मैलाथियान (2 मिली प्रति लीटर पानी) का उपयोग करें।
इसके अलावा, ग्रीष्मकालीन मूंग में पाउडरी मिल्ड्यू (सफेद चूर्ण जैसा फफूंद) भी एक आम समस्या है, जो पत्तियों को सुखाकर उत्पादन कम कर सकता है। इसे रोकने के लिए उपयुक्त फफूंदनाशकों का प्रयोग करें और खेत में अधिक नमी न जमने दें। समय पर निराई-गुड़ाई, कीटनाशकों का उचित प्रयोग और सही देखभाल से मूंग की फसल को बेहतर उत्पादन मिल सकता है।
ग्रीष्मकालीन मूंग की कटाई कब और कैसे करें?
जब ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल 60-75 दिन की हो जाती है और लगभग 80% फलियाँ भूरी पड़ने लगती हैं, साथ ही पत्तियाँ सूखने लगती हैं, तो यह कटाई का सही समय होता है। अगर सही समय पर कटाई न की जाए, तो दाने खेत में ही झड़ सकते हैं और उपज का नुकसान हो सकता है।
कटाई हमेशा सुबह के समय करें, क्योंकि इस समय नमी की हल्की मात्रा होती है, जिससे दाने झड़ने की संभावना कम रहती है। हंसिए की मदद से पौधों को जड़ से काट लें और एक जगह इकट्ठा कर लें।
कटाई के बाद पौधों को 2-3 दिन तक धूप में सुखाएं, ताकि नमी पूरी तरह से निकल जाए और दाने आसानी से अलग हो सकें। इसके बाद थ्रेशर की मदद से दाने निकालें और अच्छी तरह साफ कर लें।
भंडारण के लिए ध्यान रखें कि दानों में 10% से कम नमी हो, वरना फफूंद लग सकती है। मूंग को जूट के बोरे में नीम की पत्तियों के साथ स्टोर करें, जिससे कीट और नमी से बचाव हो सके। इस तरह सही समय पर कटाई, सावधानी से दानों को निकालना और सही तरीके से भंडारण करने से फसल की गुणवत्ता बनी रहती है।
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती में लागत और मुनाफा
अगर आप ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती करना चाहते हैं, तो यह जानना जरूरी है कि इसमें कुल खर्च कितना आएगा और आपको कितना मुनाफा हो सकता है।
1. प्रति हेक्टेयर खेती की लागत
मूंग की खेती में लगने वाले मुख्य खर्चे इस प्रकार हैं:
बीज: ₹1500-2000
खाद और उर्वरक: ₹3000-4000
जुताई और मजदूरी: ₹5000-7000
सिंचाई और कीटनाशक: ₹3000-5000
कुल लागत: लगभग ₹12,500-18,000 प्रति हेक्टेयर
2. पैदावार और संभावित मुनाफा
पैदावार: एक हेक्टेयर में औसतन 10-15 क्विंटल मूंग का उत्पादन हो सकता है।
मूल्य: बाजार में मूंग का भाव ₹60-80 प्रति किलो तक होता है, जो मंडी के रेट पर निर्भर करता है।
कुल आय: पैदावार और बाजार भाव के अनुसार किसान को ₹60,000 से ₹1,20,000 प्रति हेक्टेयर तक की आय हो सकती है।
मुनाफा: कुल आय में से उत्पादन लागत निकालने के बाद, किसान को लगभग ₹45,000 से ₹1,00,000 प्रति हेक्टेयर तक का शुद्ध लाभ मिल सकता है।
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती में बरतने योग्य सावधानियाँ
ग्रीष्मकालीन मूंग की अच्छी पैदावार के लिए कुछ जरूरी सावधानियाँ अपनाना जरूरी है। खेत में जलभराव न होने दें, क्योंकि ज्यादा नमी से जड़ें सड़ सकती हैं। बुवाई समय पर करें, क्योंकि देरी होने पर पैदावार प्रभावित हो सकती है। बीज की गुणवत्ता जरूर जांचें और केवल प्रमाणित बीज ही उपयोग करें। फसल को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए नियमित रूप से निरीक्षण करें और जरूरत पड़ने पर जैविक या रासायनिक नियंत्रण अपनाएं। अधिक पानी और उर्वरक का प्रयोग न करें, क्योंकि इससे फसल पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। सही देखभाल से मूंग की अच्छी पैदावार और बेहतर मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है।
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती गर्मियों में कम मेहनत और अच्छी कमाई का रास्ता है। इस लेख में हमने हर सवाल को डिटेल में कवर किया - "ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती कैसे करें" से लेकर "इसका मुनाफा कितना होगा" तक। इसे सही तरीके से करें, तो ये फसल आपकी मेहनत को हरा-भरा कर देगी। तो खेत तैयार करें और शुरू हो जाएँ। अपने अनुभव हमें ज़रूर बताएँ!
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